Monday 25 November 2019

भ्रष्टाचार = गुड टेररिज्म

                                             भ्रष्टाचार = गुड टेररिज्म

भारत में आचार आचरण को कहते हैं , और भ्रष्ट आचरण को भ्रस्टाचार  भारत में अगर हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई के बीच एकता का अगर एक उदहरण रखना हो तो वो भ्रष्टाचार हो सकता है , ये सब को जोड़ के रखा है , इसमें सब का बराबर हिस्सा है , इस में आरक्षण के कोई नियम कायदे लागू नहीं होते , भ्रस्टाचार एक आदर्श भारत की झलक दिखता है , भ्रष्टाचार एक ऐसी चीज है जो हमने WESTERN कल्चर से नहीं लिया , हमने इसकी परिभाषा खुद गढ़ी है , जो कि गुड टेररूरिस्म और बाद टेररिज्म कि तरह है , जब भ्रष्टाचार हमारे अपने परिवारजन करें जो तो वो ऊपर कि कमाई होती है और जब कोई हमसे करे तो हराम की | देश ने इस ऊपरी कमाई को रोकने के लिए बहुत प्रदर्शन किये पर दुसरो की कमाई , अपनी कमाई नहीं , अन्ना आये आंदोलन लाये देश घर से बहार निकल आया इस उम्मीद में की अब दुसरो की कमाई बंद होगी मगर उस आंदोलन ने देश को एक CM दे दिया मगर ऊपरी कमाई उस CM के घर क बाहर जमते हुए प्रदुषण की तरह बढ़ती गयी , फिर इस देश में युगपुरुष द्वारा काले धन के ऊपर सर्जिकल स्ट्राइक हुई , पूरा देश लाइन में आ गया वो परिवार भी गरीब दिखने की कतार  में खड़ा हो  गयी जिनकी दादी माँ ने ४० साल पहले गरीबी हटाने का वादा किआ था , INDIA TODAY के हिसाब से 105  जान गयीं पर फिर भी ये जालिम दुनिया दुसरो की ऊपरी कमाई रोकने में नाकामयाब रही , दुसरो को नुक्सान पहुँचाना कब सिद्ध हुआ है भला ?


भलाई सिर्फ इसमें है की आप गुड भ्रष्टाचार की तरफ केंद्रित रहिये और बेड भ्रष्टाचार को उसी तरह भुला दीजिये जैसे अपने CAG रिपोर्ट , पेट्रोल की कीमत , डॉलर की उछाल को भुला रखा है , अपने बेहेन की शादी उस घर में कीजिये जहाँ लड़का सरकारी नौकरी वाला हो और जिनके पापा बोलेन की  तनखाह तो  30000 ही है पर ऊपर कि कमाई से इतना हो जाता है की तनखाह को छूने की जरुरत नहीं  पड़ती है , और अपने आप को और सबसे जरुरी अपने छोटे भाई को ये सलाह दीजिये की सरकारी नौकरी ही पाना है और जब वो पूछे की सरकारी ही क्यों ? तो कह दीजियेगा की सरकारी में आराम बहुत है , यही आराम भले हमे आज इस कगार में ला कि खड़ा कर दिया हो की देश की हर सरकारी कंपनी या तो आधी बिक चुकी हैं या बिकने कि कगार में हैं , सोचने वाली बात हैं की सरकारी नौकरी उन्हें ही मिलती हैं जो पहले अपने क्लास कि अव्वल छात्र हुआ करते थे और अब उन्हें मिलती हैं जो अपने जिला कि सबसे होनहार हैं और ऐसे अव्वल छात्र अंदर जा के कैसे क्षीण हो जाते हैं की उनकी अन्नदाता अपना अन्नदाता ढूंढ़ने में लग जाती है खैर वो दूसरी बेहेस है , तब तक के लिए इस GOOD CORRUPTION रूपी वरदान का आनंद उठाइये |

Saturday 10 June 2017

किसान - एक वोट

                                         

आज से बहुत सालो पहले किसान अन्नदाता हुआ करता था,धरती पर लोगो के भरड़ पोषण का जिम्मा अगर किसी के ऊपर था तो वो किसान था, फिर धरती औद्योगीकरण की और बढ़ी और अब कंधो पर भार भड़ता गया और किसान उद्योग में पिछड़ता गया, कई जगह हरित क्रांतियों ने जन्म लिए और एक घूँटा दिआ किसानो को, जिस ग्राफ से उन पर उम्मीदें बढ़ती गयी उसी ग्राफ से उनकी सामाजिक और आर्थिक स्तिथि गिरती गयी,जिस आजादी की नीव चम्पारण में किसान के छाती पर रख कर गयी थी आज उस आजादी का मोल किसान पा नहीं रहा, हर साल हर सरकार अपना HAPPY BIRTHDAY मनाती है मगर किसान तक केक कभी पहुँचता ही नहीं  है |

समय के साथ किसान बदला है, किसान अब अन्नदाता नहीं है, किसान अब वोट है | किसान वो वोट है जो न तो अल्पसंख्यंक का मजा लूटता है , न ही आरक्षण का तो एक पका पकाया वोट है किसान |
आज से बहुत साल पहले एक छोटे कांटी के नेता ने मंच से कहा 'जय जवान जय किसान" आज वो  किसान भी वोट है, और वो जवान भी | दिल के कहीं कोसो भीतर जो हमारे अंदर किसानो के प्रति प्रेम है जो अक्सर आर्टिकल में उभर आता है वो दरअसल जीवन में खो गया है, खेतो और सड़को पर आंदोलन करने वाले, भूँके पेट आसान करने वाले जब सत्ता में पहुँचते हैं तो वो खेत, वो भूँक भुला देते हैं, गलती उनकी नहीं है AC कैब में बैठ कर बाहर की दुनिया धूर्त और बेसहूर लगने ही लगती है, हालत ये है की किसान बस अब घोसड़ापत्र  में दीखता है, नेता जी की फोटो के निचे हल चलाता हुआ दीखता है, मगर दूर कहीं असल जिंदगी में वो इस चयन में लगा रहता है की रस्सी महंगी है या सल्फाश (जहर ) | आज किसान एक वोट है, जिसको एक पार्टी बोती है , दूसरी सींचती है और तीसरी काटने चली आती है, राजनीती प्रशंशा नहीं आलोचना के काबिल है क्यूंकि किसान भी वोट है और तुम भी वोट हो |

आज जब दोपहर में रोटी का पहला निवाला दाल में डुबोइएगा तो जीभ में लगाने से पहले सोचियेगा की कहीं इसे उगाने वाला जहर चखने की फ़िराक में तो नहीं है |     

Friday 6 January 2017

TINDER WALA DHOKA

इंस्टाग्राम में DM आया कसम से खुश हो गए बायो में DELHIITE भी लिखा था..गूगल खोले देखे 10 TIPS TO IMRESS A GIRL . 5 ही मिनट में पूरा पढ़ डाले और सीधा सब कुछ कॉपी करते गए मैसेज में उन्होंने नंबर दिया हम समझ गए इनकी भी हालात भी बस हमारी जैसी है, पूछने पे बतायीं की SOUTHEX की हैं, बस हम सातवे आसमान में, हम ने ज़िद्द ही कर दी मिलने की, डर था कहीं किसी और के DM का रिप्लाई न कर दें ये | जैसे की सब आकर मिलते हैं राजीव चौक में हम भी मिले, सेंट्रल पार्क पास ही था बैठे फिर जैसे ही उन्होंने सामने CCD देखि उन्हें धूप लगने लगी हम भी तैयार हो कर आये थे इसके लिये कसम से | पहुँच गए बढ़िया माहौल था अंदर का एक दम चका चौंध खूब बढ़िया कॉफ़ी महक रही थी मेनू में उन्हें ETHIOPIAN कॉफ़ी पसंद थी 140 की ,गुप्ता जी की दुकान याद आ गयी कसम से 5 रुपये का पाउच लाते थे और हम सब पीते थे बहुत गन्दा लूटने वाले थे एहसास हो रहा था दोस्त होता तो कह भी देते एक और मग्घा ले आना बे इसी में पी लेंगे, पर चोमू बन गए थे, मंगवा लिए | वो परी लग रही थी कसम से, हम तो मतलब बहुत खुश थे की हो गया अब हो गया, वो जैसे ही कॉफ़ी में दिल बनवाने गयीं तो उनके फ़ोन में TINDER का नोटिफिकेशन POP होने लगा,बहुत गन्दा दिल टूट गया हमारा भी और कॉफ़ी वाला भी कॉफ़ी का तो हम ही तोड़े थे पी गए उसको | वो कह रही थी ये नार्मल हैं , हमको व् लगा सही हैं | चले आये वहां से बैठे थे उदास कसम से गरिया रहे थे सब सेंट्रल पार्क में नीचे साइड बैठने वालो को | शाम को जब सोचे की ऐसे नहीं चल पायेगा गए RAFTAAR में एक FOSTERS खोल ही रहे थे की वहां एक हमारे जैसा ही लड़का उस परी को प्रोपोज़ कर रहा था, हम समझ गए नार्मल क्या है| SHE ACCEPTED HIM फिर कुछ देर बाद दोनों "मेरे सैयां जी से आज मैंने ब्रेकअप कर लिया" वाले गाने में खूब नाच रहे थे, उस लड़के में हमको हम ही दिख रहे थे, FOSTERS भी छोड़ आये उसी के लिए |
हमको कसम से अपना शहर याद आ गया उसको एक बार बस मिश्रा सर की कोचिंग से उतरते देख लेते थे तो 3 हफ्ते कि खुराक मिल जाती थी बस हो गया उतने में ही खुश रह लेते थे, केमिस्ट्री लैब हम बार बार क्यों जाते थे? जिससे रोशनदान से उनको झाँक सकें और केमिस्ट्री वाली मैडम समझ जाती थी की कुछ देर तक और झांकते रहे तो एक्सप्लोसिव रिएक्शन हो जायेगा और हमे बुला लेती थी लैब में | ऑनलाइन डेटिंग तो हम करते थे उनके 3 months ago के TTYL को पढ़ कर खुश होते रहते थे , DDLJ टाइप रोमांटिक लगता था वो मीनिंग उसकी कभी पूंछते ही नहीं थे उनसे ,शर्म आती थी,अब लगता हैं काश पूछ ही लिए होते पर तब कि मजा अलग था रजाई लाख अच्छी थी पार्क से ,तकिया लाख अच्छा था HUG से | उम्मीद नहीं छोड़े हैँ पर हमको पता हैं जब उनकी शादी हो जाएगी और कार के पीछे लाल स्टीकर से जो दो बच्चो के नाम लिखे होंगे उनमे से छोटे वाले का नाम 'PRINCE ' जरूर होगा |

Wednesday 21 December 2016

  1. बहुत कुछ बदल गया है , पहले मम्मी स्कूल जाने के लिए सुबह उठाया करती थी फिर हमने अलार्म लगाना शुरू कर दिया शायद तब ही से जिंदगी बेकार सी हो गयी, दोस्त जब से WhatsApp चलाने लगे शायद दूरी भी तब ही से बढ़ गयी नोस्टालजिक कहो या कुछ भी पर सच है ये |
  2. तुम्हारे लिए भी अब धीरे धीरे सारी आदत जाती जा रही हैं , अब पुराने मैसेज भी नहीं पढता तुम्हारे , न बार बार प्रोफाइल खोलता अब तुम्हारी और न ही अब सपने भी देखता बस एक आदत नहीं जा पा रही , एक दम चिपक सी गयी है , हाँ तुम्हारा नाम लिखने की आदत ...नहीं जा रही है |
  3. पहले भी हर जगह लिख दिया करता था तुम्हारा नाम शायद वो नाम तुम्हारे वहां होने का एहसास दिलाता है , कभी अपने हाथ में लिख लिया करता और सब से पुरे दिन छुपाते फिरता था, कभी कॉपी के आखिरी पन्ने में अपने साथ तुम्हारा नाम लिख देता था और फिर गाढ़े रंग से उसे काट देता था , कभी बोर्ड के सबसे किनारे तुम्हारे नाम का पहला अक्षर लिख देता था और फिर हाथ से ही मिटा देता था , उस नदी की रेत में जरूर आज भी तुम्हारा नाम लिखा होता अगर मैंने उसे भी न मिटाया होता तो शायद हमेसा से ही इस बात का डर था की कोई तुम्हारा नाम पढ़ न ले बहुत संभल कर रखा था मेने तुम्हारा नाम बस एक जगह ही तुम्हारा नाम नहीं लिख पाया और न ही उस जगह से मिटा पाया आज भी तुम जब बहुत याद आती हो सामने वाले कांच में जमी हुई ओस में सुबह सुबह तुम्हारा नाम लिख कर मुशुकरा लेता हु और तब तक देखता रहता हु जब तक धूप खुद ही उसे न मिटा दे |

Monday 28 November 2016

" सत्ता समाज और साहित्य "
भारत माता की जय और गिलास आधा खाली नहीं है आधा भरा हुआ है | ये जरुरी लगा मुझे स्टार्टिंग me कहना ताकि मेरी देशभक्ति पर शक़ न किआ जाये और मुझे नकारात्मक न समझ जाये |
अपनी एक कहानी से स्टार्ट करता हु , मेरे 9th में 7.6 CGPA आये अब तक के सबसे ज्यादा, घर में सब खुश थे ,पापा भी रस मलाई ले कर आ गए,मुझे लगा मेरे छोटे भाई को बर्फी ज्यादा पसंद है इसलिए वो उस दिन गुस्सा हो गया, छोटी सी ही बात थी तो गुस्सा क्यों हो गया ? मुझे लगने लगा की ये पापा से उतना प्यार नहीं करता जितना मैं करता हु, सही भी तो था मैं पापा इतना खुश हो कर लाये थे और वो गुस्सा हो गया ,मैंने मम्मी से पूछा की वो ऐसा क्यों कर रहा है ?? इस बात को अभी यहीं रोक देते हैं |
मेरा आज का विषय है सत्ता,साहित्य और समाज |
आज से 60 साल पहले जब मेरे किसी पूर्वज ने अपने डायरी में कुछ लिखा होगा तो उसका विषय रहा होगा समाज,साहित्य और सत्ता , क्रम देखिएगा मेरे में सत्ता पहले है उस वक़्त शायद समाज रहा होगा , साहित्य हमेसा मध्यस्त रहा |

चलते हैं उस वक़्त जहाँ से ये क्रम बदला था ..70 के दशक में इस देश को एक नारा मिला "INDIA IS INDIRA AND INDIRA IS INDIA " ये अब तक के किसी नेता की लोकप्रियता की चरम सीमा बताता है की उसे ही भारत समझ गया | जब ये नारा दिया गया तो नागार्जुन ने कहा "तू है आकाश में तेरे कदमो के नीचे जमीन नहीं, हैरान हु की तुझे अब तक है ये यकीन नहीं , याद रख तू इस मशीन का बस एक पुर्जा है ,मशीन नहीं | नागार्जुन का कद बहुत छोटा था उस वक़्त उनकी बात को बेवकूफी समझा गया उनके संपादक ने उन्हें निकाल दिया क्योंकि INDIRA IS INDIA AND INDIA IS INDIRA था , मगर उस बात का असर देश को तब दिखा जब इस देश में इमरजेंसी लगी, और तब इस देश को मह्सूस हुआ की नागार्जुन ने सच कहा था..Indira जी का देश प्रेम जग जाहिर है, मगर लोकप्रियता उन्हें एक गलत कदम की तरफ ले गयी वो खुद को शायद इंडिया समझने लगी थी | उस वक़्त इस देश में बहुत काबिल लेखक नागार्जुन, दुष्यंत कुमार , नेता अडवाणी ,जयप्रकाश नारायण,अटल जी ,अध्यापक सुभ्रमनियम स्वामी , और छात्र और अनेक देशवासी थे जिन्होंने इसका विरोध किया और इस देश को उस समय से निकाला | इंदिरा जी ने एक टीम नियुक्त की और सर्वे कराया की अगर आज जनमत हो तो उन्हें कितनी सीट मिलेंगी रिपोर्ट में बताया गया की इंदिरा जी 300+ सीट जीत रही हैं , इंदिरा जी ने चुनाव कराया और कांग्रेस पुरे देश से साफ़ हो गयी इसका मतलब यही है की जब तारीफ़ चाटुकारिता या भय का रूप ले लेती है तो वो भयानक होती है | आने वाली हर सरकार ने Indira जी से एक सीख ली की अगर आप इस देश में सत्ता को मजबूत करना चाहते हैं तो जो "mediocre" उन्हें आगे लाया जाये यानि जो औसत लोग हैं उन्हें आगे बढ़ाया जाये मगर शर्त ये थी की जो सीर्ष में हैं उनको पीछे कर के ये जो आरक्षण हर साल बढ़ जाता है और हर साल एक नयी जात जुड़ जाती है ये उसी नीति के फलस्वरूप है जनरल के लिए अब IAS सिर्फ मृगतृषडा बन गयी बस कुछ ही कस्तूरी सूंघ पाते हैं , एक औसत लड़का इस देश की प्रशासनिक सेवा के उच्च पद में पहुँच जाता है और जो हकदार है वो अवांछित रह जाता है , साहित्य अकादमी भी एक सफल प्रयास रहा लेखक के शब्द को बाँधने के लिए |
और इसका असर फिर समाज में भी दिखा घर का वो छोटा लड़का जो हर बात पर सवाल पूछना चाहता है और बड़े अक्खड़ अंदाज से किसी भी रिश्तेदार को जवाब देता है तो उसे चंचल या शैतान य नालायक समझ लिया जाता है और वो बड़ा लड़का सबसे शालीन होता है जो घर की हर बात में हाँ से हाँ मिलता है, शायद सही भी है वो क्योंकि ये वो अपना फर्ज समझता है | अध्यापक के लिए भी स्कूल की वो क्लास सबसे अच्छी होती है जो हल्ला नहीं करती , मतलब सवाल नहीं पूछती और जिस क्लास के मन में सवाल होता है वो उद्दंड क्लास होती है , क्लास का वो लड़का जो हर बात पर एक सवाल पूछता है वो सब अध्यापक और बच्चो की आँख में गड़ता है , मैं भी अपने स्कूल के टॉपर से बहुत जलता था पर धीरे धीरे मुझे ये लगा की मेरे जैसे सभी mediocre उसे उतना ही जलते है , उससे रट्टू समझते हैं, मगर नहीं वो रट्टू नहीं था ,हमने ये सीखा था की टॉपर अच्छे नहीं होते हम एवरेज ही सबसे अच्छे होते हैं, स्कूल में प्रिंसिपल भी वही बनता था जो डायरेक्टर या चेयरपर्सन के करीब होता था , यूनिवर्सिटी का VC भी वही बनता हैं जिसकी सरकार से अच्छी बनती हैं , ये असर इस देश के संविधान के एक खम्बे पर भी दिखने लगा हर शाम 9 बजे वही 4 लोग आ जाते हैं जो हर विषय में निपुण होते हैं चाहे अंतरराष्ट्रीय मुद्दा हो, बॉर्डर की बात हो , दाल के दाम पर बेहेस हो ,कहीं के चुनाव पर हो ,बाढ़ पर हो , किसान की हालात पर हो ये 4 लोग हर विषय पर अपना विचार रखते हैं और अंत में हर विषय गाय,फ़ौज, तिरंगे पर ख़तम हो जाता है, ऐसा नहीं है की माड़ीशंकर अय्यर, संबित पात्रा, और त्यागी जी से अच्छे वक्ता नहीं हैं मगर उन्हें आगे नहीं आने दिया जाता क्योंकि अगर सशि थरूर आये तो वो तो अपनी ही पार्टी की भी आलोचना कर सकते हैं और भाजपा की तारीफ़ भी |
चाणक्य ने कहा था की जिस देश के दरबारी और कवि राजा की तारीफ करने लगे वो उस राज्य को क्षति पहुंचा रहे हैं, ओम पंवर जी जिहोने बीजेपी की राज्यसभा सीट ठुकरा दी थी आज वो भी मानते हैं की जब से उन्होंने प्रधानमंत्री जी की तारीफ लिखी तब से उनकी कलम में वो पैनापन नहीं रहा |
अब आते हैं उस कहानी में मम्मी ने मुझे बताया की बेटा तुम्हारा भाई पापा से प्यार करता है और उम्मीद रखता है इसीलिए वो उन पर गुस्सा भी हो सकता है इसे कुछ और समझना गलती होगी|
और तब मुझे ये बात समझ आयी जब मैंने देखा की यहाँ सिर्फ मोदी जी, केजरीवाल , मनमोहन सिंह इन्ही की आलोचना होती है क्योंकि लोग इनसे उम्मीद रखते हैं ,कभी कोई रमन सिंह को कुछ नहीं कहता | ये तो खैर मजाक था लेकिन बात ये है की सवाल पूछने वाले को आप गलत न समझें अगर मेरे मन में सवाल आता है की शिक्षा पर भी घोटाले वाले आराम से कैसे बैठे हैं ? जिस JNU के छात्र को पुरे देश ने एकमत में देशद्रोही घोषित कर दिया उस पर इस देश के सबसे बड़े प्रशासनिक संसथान ने एक भी चार्जशीट क्यों नहीं दायर की, ? और अगर उसमे उसका हाथ नहीं था तो असली कौन था ? अगर बर्बरता बाबर और औरंगज़ेब ने की तो बब्बन मियां का घर क्यों जल जाता है ? इस देश में गाय से भी दयनीय हालात मुझे मुर्गे की लगती है इसे आप मेरे देशप्रेम से नहीं जोड़ सकते क्योंकि आपको भी हॉकी से ज्यादा क्रिकेट पसंद है | बात ये है की अगर मुझे विराट कोहली नहीं पसंद तो क्या मैं इंडिया को जीतता हुआ नहीं देखना चाहता ? पर असल बात तो ये है की हम सबको कोहली पसंद है , जितना आप सब को | इस देश में एक संगठन ऐसा भी है जो लोगो की सेवा करता है , अनेक संसथान चलाता है मगर इस देश के राष्ट्रपिता के विचार को गलत समझता है पर हम उसे देशद्रोही कहे
ये गलत होगा मतलब विचार अलग हो सकते है, अगर आपके मन में सवाल नहीं उठता तो आप इस देश के आर्दश बड़े बेटे हैं और अगर हमे ये सवाल परेसान करता है की रोबर्ट वाड्रा को जेल भेजने की तयारी सिर्फ चुनाव के वक़्त ही क्यों होती है, ये हमारे पैसे के टैक्स से बने हुए बजट से भारत सरकार 20 हज़ार करोड़ रुपये उन बैंक को क्यों दे देती है जो अमीरो के सात हज़ार करोड़ माफ कर देती है और ब्याज न चूका पाने के कारण किसान खुद को अपने ही खेत के नारियल से निकली हुई रस्सी से लटका कर मार देता है ? अगर ये बेहुदा सवाल हमे परेसान करते हैं तो हम इस भारत माँ के छोटे बच्च्चे हैं , आप बड़े हैं हम छोटे हैं लेकिन हैं भारत माँ के ही बेटे |

Tuesday 11 October 2016

  1. छत देखे हैं कभी ?? अब आप सोच रहे होंगे ये कैसा सवाल है जाहिर सी बात है सबने देखी ही होगी छत |
    नहीं ,नहीं देखी ही बहुत लोगो ने नहीं देखीं है ये जो आज कल मुम्बई ,पुणे ,बैंगलोर में पैदा होते हैं न वो बस 2 BHK में ही रह जाते हैं और ज्यादा से ज्यादा नीचे एक पार्क में वो भी SATURDAY SUNDAY .
    मैंने खुद नहीं देखी छत जहाँ मैं डेढ़ साल से रह रहा हु , मुझे याद है एक बार वो गुस्सा हो गयी थी क्योंकि उसने उस शाम छत पर बुलाया था और मैं गया नहीं, फिर 2 दिन तक नाराज थीं वो, खैर छोड़िये तो चल...िए मान लीजिये यहाँ छत नहीं होती यहाँ एक बालकनी होती है छोटी सी जहाँ से हम भागती दुनिया को देख सकते हैं कुछ देर रुक कर | आज छुट्टी थी तो देर से उठा जब दोपहर को बालकनी में तौलिया लेने गया तो एक बहुत क्यूट सा टेडी बियर टाइप का लड़का ज़िद्द कर कर रो रहा था लग रहा था की जैसे उसे अब २-३ महीने पहले की साइकिल पुरानी लगने लगी और अब उसे पार्क में आने वाले उसके दूसरे दोस्त की तरह ही साइकिल चाहिए ||
    इतने में ही मेरी नजर पड़ी एक मेरे जैसे ही काले छोटे शैतान लड़के पर जिसकी शर्ट और पैंट का कॉम्बिनेशन मुझे सही नहीं बैठ रहा था, शर्ट भी बस अब एक दो दिन और चलती शायद उसकी अपनी माँ के साथ था माँ के लंबे कदम के साथ खुद अपने कदम मिला नहीं पा रहा था इसलिए शायद दौड़ लगा रहा था कितना मासूम था न वो , मैं उसकी मासूमियत में खोया ही था की एक कंकड़ चुभ गया उसके पाँव में रुक गया वो मेरे दिल की तरह, हाँ उसके चेहरे की मासूमियत के आगे मैंने ये तो देखा ही नहीं की उसके पाँव में चप्पल तक नहीं है मैं सोचने लगा इतनी तेज धूप में कैसे सेहता होगा ये सब अब मुझे समझ आया की आखिर रफ़्तार क्यों थी उसमे वो जानता था की अगर वो धीरे चला तो उसे इस गर्मी में और तपना पड़ेगा इतने में ही उस माँ ने कहा चलो जल्दी चलो "बाई आ गयी है कहा न अगले महीने जन्मदिन में नयी साइकिल दिला देंगे" वो लड़का पैडडल मार कर चल दिया अपने घर की तरफ उधर उस माँ ने अपने बच्चे को पुकारा अरे कहाँ रुक गया रे जल्दी आ दौड़ कर |
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    . सच कहूँ बहुत तेज थप्पड़ लगा मेरे गाल में, मैं चाहता था आपको भी लगे एक ||

Tuesday 20 September 2016

शहीद का शव आता है पूरा देश रोता है | उसको अंतिंम सलाम दिया जाता है आर्मी के अधिकारी आते हैं शहर के नेता आते हैं राहत के लिए कुछ मदद की जाती है| सरकारी नौकरी दी जाती है मगर दो दिन बाद घर में बचते हैं उसकी छोटी बच्ची, उसकी बूढी माँ, छोटा भाई, पिता और उसकी पत्नी दो दिन बाद वो क्या सोचते हैं वही लिखने की कोशिश की है ||
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मैं अगर किसी मंदिर में जाऊं और वहां आरती भूल जाऊं तो अगर मैं इन पंक्तियों को पढ़ दूँ तो मुझे पता है की भगवन मुझे उतना ही फल देंगे ||
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तुम लौट कर क्यों न आये |
कर के गए थे तुम वादा,तो फिर लौट कर क्यों न आये ||
कह कर गए थे की जा रहे हो लेने बस गुड़िया तुम |
पापा गुड़िया ले कर फिर तुम लौट कर क्यों न आये ||
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तुम लौट कर क्यों न आये |
जब माँ के लड्डू ले कर गए थे, तो फिर लौट कर क्यों न आये ||
कह गए थे न की अबकी बार जब आओगे तो पक्की करवा दोगे छत |
बूढ़े बाप पर टपक रहा है बारिश का पानी,तो फिर तुम लौट कर क्यों न आये ||
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तुम लौट कर क्यों न आये |
भाई रो रहा है हो कर अकेला तुम लौट कर क्यों ना आये ||
दो महीने पहले ही तो हुए थे संग तुम दोनों |
मेहँदी की खुशबू चीख रही है तुम लौट कर क्यों न आये ||
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तुम लौट कर क्यों न आये |
छोड़ दिया साथ यारो का तुम लौट कर क्यों न आये ||
आम जामुन के बगीचों की रौनक थे तुम
सूना हो गया है गाँव तुम लौट कर क्यों न आये ||